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समन्वित पारिस्थितिकीय विकास अनुसंधान कार्यक्रम   . . . . . . . . .


परियोजना प्रस्ताव के लिए प्रारूप →
आईईआरपी (दिसंबर-2022) के तहत लघु-अनुदान परियोजनाओं को प्रस्तुत करने का आमंत्रण→
परियोजना मूल्यांकन समिति →
जारी प्रोजेक्ट →
पूर्ण प्रोजेक्ट→
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शुरुवात

चौथी पंचवर्षीय योजना (1969-74) में पहली बार आर्थिक विकास की योजना बनाने की प्रक्रिया में पर्यावरणीय विचारों के एकीकरण की चिंता व्यक्त की गई थी। इसके बाद पर्यावरणीय समस्याओं पर अनुसंधान को बढ़ावा देने और जहां आवश्यक हो ऐसे अनुसंधान के लिए सुविधाएं स्थापित करने के लिए 1972 में भारत सरकार द्वारा पर्यावरण योजना और समन्वय पर राष्ट्रीय समिति (एनसीईपीसी) का गठन किया गया था। इन लक्ष्यों के अनुसरण में एन.सी.ई.पी.सी. ने पर्यावरण अनुसंधान समिति (ईआरसी) और मानव और जीवमंडल (एम.ए.बी.) अनुसंधान समिति का गठन किया है ताकि पर्यावरण संबंधी चिंता के विभिन्न क्षेत्रों में अनुसंधान कार्य को बढ़ावा देने और समर्थन करने में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) की सहायता की जा सके। 5वीं पंचवर्षीय योजना अवधि के दौरान नियोजन और विकास प्रक्रिया में पर्यावरणीय विचारों का समर्थन करना जारी रखा। जैसे-जैसे बढ़ती राष्ट्रीय आवश्यकताओं के अनुसार पर्यावरण्ीय मुद्दे समय के साथ और अधिक जटिल होते गए भारत सरकार ने पर्यावरण विभाग की स्थापना की । पर्यावरण और पारिस्थितिकी से संबंधित सभी विषयों के लिए सरकार के भीतर एक केन्द्र बिंदु के रुप में 01 नवम्बर, 1980 इसके बाद छठी पंचवर्षीय योजना के दस्तावेज में संतुलित विकास की आवश्यकता पर बल दिया गया ताकि विकास गतिविधियां पारिस्थितिक संरक्षण के साथ-साथ आगे बढ़ सके। सातवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान पर्यावरण विभाग द्वारा विभिन्न योजनाओं का संचालन किया गया। इंटीग्रेटेड एक्शन ओरिएंटेड रिसर्च डेवलपमेंट एण्ड एक्सटेंशन प्रोग्राम एक ऐसी ही गतिविधि थी और इसे देश के तीन प्रमुख क्षेत्रों पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट और हिमालयी क्षेत्र में लागू किया गया था। हालांकि पर्यावरण और वन मंत्रालय भारत सरकार द्वारा हिमालयी क्षेत्र पर पर्यावरण विकास कारवाई उन्मुख अनुसंधान को इसकी कम उम्र, जटिल भूविज्ञान प्रमुख नदियों की जटिल जल निकासी तंत्र और जटिल वन पारिस्थितिकी तंत्र की सापेक्ष नाजुकता के कारण प्राथमिकता दी गई थी।

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जिम्मेदारियां

1980 के दशक के दौरान, योजना आयोग, भारत सरकार ने, एक विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के आधार पर, हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरण विकास गतिविधियों में छात्रों की भागीदारी पर ध्यान केन्द्रित करने वाले कार्यक्रमों में माध्यम से जागरुकता पैदा करने के लिए इस कार्यक्रम की शुरुआत की और बाद में इस कार्यक्रम को पर्यावरण विभाग (पर्यावरण और वन मंत्रालय) को सौंपा। भारत सरकार द्वारा हिमालयी क्षेत्र में विभिन्न अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं (आठ राज्यों में, उ0प्र0 हिल्स, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, मणिपुर, मेघालय, असम, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा) को विभिन्न विश्वविद्यालयों/अनुसंधान संस्थानों/ एनजीओ आदि को योजना आयोग/पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा वित पोषित किया गया था। इन अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं के उत्पादन के आधार पर, उपयोगकर्ता स्तर पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी अनुसंधान और व्यावहारिक अनुप्रयोगों के बीच अंतराल (जहां वास्तविक महसूस की गई आवश्यकता निहित है) को महसूस किया गया। इसलिए, यह आवश्यक समझ्ाा गया कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी अनुसंधान के परिणामों का उन क्षेत्रों में व्यावहारिक रुप से अनुप्रयोग किया जाना चाहिए जहां उनकी आवश्यकता है। इस उद्देश्य के साथ, पर्यावरण और वन मंत्रालय, भारत सरकार ने हिमालयी क्षेत्र के लिए एकीकृत कारवाई उन्मुख अनुसंधान, विकास और विस्तार कार्यक्रम (जिसे एकीकृत पारिस्थितिकी विकास अनुसंधान कार्यक्रम, आई0ई0आर0पी0 कहा जाता है) को जी0बी0 पंत हिमालय पर्यावरण और विकास संस्थान के क्रियान्वित करने हेतु 01 अप्रैल 1992 से हस्तान्तरित किया गया।
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उद्देश्य

सामान्य तौर पर, इस कार्यक्रम में एकीकृत अनुसंधान और विकास की परिकल्पना की गई है, जिसका उद्देश्य भारतीय हिमालयी क्षेत्र की पारिस्थितिक समस्याओं का स्थायी आधार पर समाधान खोजना है क्योंकि लोगों के लाभ के लिए अनुसंधान निष्कर्षों को व्यावहारिक अनुप्रयोग में अनुवाद करने की तात्कालिकता बढ़ रही है। शैक्षिक और अनुसंधान संस्थानों, स्वैच्छिक एजेंसियों (एनजीओ) और लोगों को शामिल करते हुए सहयोगात्मक और पूरक अनुसंधान और विकास कार्यक्रम वैज्ञानिक और तकनीकी ज्ञान के अनुप्रयोग और उसमें सुधार लाने के लिए आवश्यक है। भारतीय हिमालयी क्षेत्र के लिए ’’एक्शन ओरिएंटेड रिसर्च, डेवलपमेंट एण्ड एक्सटेंशन प्रोग्राम (आईईआरपी कहा जाता है) का मौलिक क्रियात्मक उपयोग पहाड़ों में पर्यावरणीय क्षरण को रोकने और पर्यावरणीय गुणवत्ता की बहाली के दोहरे सिद्धांतों पर आधारित है। इस तरह के प्रयासों का मुख्य उद्देश्य बाहरी सुझ्ााव या समर्थन पर कम निर्भरता के साथ एक स्थायी, आत्मनिर्भर सामाजिक-आर्थिक विकास सुनिश्चित करना है तथा स्थानीय रुप से उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करते हुए प्रतिकूल प्रभावों से बचने के साथ आय के नये स्त्रोत स्थापित करना है, इसलिए आई0ई0आर0पी0 का मुख्य उद्देश्य पारिस्थितिक संतुलन के संरक्षण के साथ पर्वतीय क्षेत्र के लोगों के सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है, और उनके आर्थिक उन्नयन और सामाजिक जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने का प्रयास करना है। संस्थान सीधे तौर पर आई0ई0आर0पी0 के साथ 01.04.1992 से जुड़ा हुआ है। उक्त कार्यक्रम को स्वीकार करने के बाद, संस्थान द्वारा समन्वित पारिस्थितिकीय विकास अनुसंधान कार्यक्रम के अन्तर्गत दो वृहत शीर्षस्थ प्राथमिकता के वांछित क्षेत्रों की पहचान कर परिलक्षित किया है। 1) समन्वित पारिस्थितिकीय विकास हेतु प्रौद्योगिकी विकास एवं अनुसंधान तथा 2) प्रौद्योगिकी प्रदर्शन एवं प्रसार।


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कार्यान्वयन की क्रियाविधि

आई0ई0आर0पी0 के तहत विकास एवं अनुसंधान परियोजना प्रस्तावों पर तभी विचार किया जाता है जब वे ऊपर बताए गए दो प्रमुख क्षेत्रों में आते हैं। परियोजनाओं का उद्देश्य स्थान-विशिष्ट समस्याओं की पहचान करना/उनका समाधान करना होना चाहिए। दूसरा, स्थानीय रुप से उपलब्ध संसाधनों या प्रौद्योगिकियों के उपयोग को प्रोत्साहित करते हुए सामाजिक आर्थिक उत्थान की अभिवृद्धि करते हैं। तीसरा स्थानीय संसाधनों का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करना, आर्थिक गतिविधियों को मजबूत करना, पर्यावरण सुरक्षा उपायों को सुनिश्चित करना और आय-सृजन में वृद्धि करना।

वित्तीय सहायता के लिए परियोजना प्रस्तावों का मूल्यांकन विषय विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है और उसके बाद परियोजना मूल्यांकन समिति (पीईसी) (पर्यावरण, वन और जलवायू परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा गठित) के समक्ष विचार/सिफारिश के लिए रखा जाता है। सिफारिशों के आधार पर संस्थान द्वारा परियोजनाओं को स्वीकृत और वित पोषित किया जाता है।

परियोजनाओं को आम तौर पर तीन साल तक की अधिकतम अवधि के लिए स्वीकृत और वित पोषित किया जाता है। स्वीकृत परियोजनाओं की निगरानी विषय विशेषज्ञों के माध्यम से वार्षिक प्रगति रिपोर्ट(एपीआर) और अंतिम तकनीकी रिपोर्ट (एफटीआर) के मूल्यांकन द्वारा की जाती है। कार्यवाही उन्मुख परियोजनाओं के मामले मे कार्य का स्थलीय आधार पर मूल्यांकन आमतौर पर विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है। एफटीआर अंततः संबंधित राज्यों और केन्द्र सरकार के संबंधित विभागों को सिफारिशों/निष्कर्षों की पुनरावृत्ति के लिए भेजे जाते हैं। अनंसंधान निष्कर्षों के व्यापक प्रसार के लिए संस्थान के एनविस बुलेटिन में सभी पूर्ण परियोजनाओं के सार भी प्रकाशित किए गए हैं।
संस्थान द्वारा 20 प्रतियों में निर्धारित आई0ई0आर0पी0 प्रारूप में प्रस्तावों पर विचार किया जाता है।


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उपलब्धियां

आई0ई0आर0पी0 के माध्यम से संस्थान भारतीय हिमालयी क्षेत्र की विभिन्न स्थान-विशिष्ट पारिस्थितिक समस्याओं का स्थायी आधार पर समाधान ढूंढ रहा है। यह योजना दूसरे उद्देश्य को प्राप्त करने में भी सफल रही है (अर्थात, पर्यावरण के स्थानीय ज्ञान को पहचानना और मजबूत करना और हिमालयी क्षेत्र मे काम कर रहे वैज्ञानिक संस्थानों, विश्वविद्यालयों/एनजीओ/स्वैच्छिक एजेंसियों में क्षेत्रीय प्रासंगिकता के शोध को मजबूत करने मे योगदान देना। (प्दजमतंबजपअम छमजूवतापदह) आई0ई0आर0पी0 के लक्ष्यों तथा संस्थान के अपने अधिदेश के अनुसार यह कार्यक्रम भारतीय हिमालयी क्षेत्र में वैज्ञानिक क्षमताओं को विकसित करने के साथ-साथ बुनियादी ढांचे और मानव संसाधन विकास को मजबूत करने के अलावा स्थान.-विशिष्ट की समस्याओं के समाधान खोजने और प्रदर्शनों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

संस्थान के समन्वित पारिस्थितिकी विकास अनुसंधान कार्यक्रम, आई0ई0आर0पी0 के तहत अब तक की गई कुछ प्रमुख उपलब्धियां नीचे दी गई हैं:
           कार्यक्रम (आईईआरपी) की परियोजना मूल्यांकन समिति (पीईसी) और वैज्ञानिक सलाहकार समिति (एसएसी) [पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा गठित] द्वारा समय-समय पर पूरी तरह से निर्देशित और निगरानी/समीक्षा की जाती है

 

 

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें


निदेशक
जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान
कोसी-कतरमल, अल्मोड़ा, 263 643, उत्तराखंड, भारत
ई-मेल: psdir@gbpihed.nic.in

डॉ. आई. डी. भट्ट,
वैज्ञानिक जी & प्रभारी वैज्ञानिक, आई.ई.आर.पी

जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान
कोसी-कतरमल, अल्मोड़ा, 263 643, उत्तराखंड, भारत
ई-मेल: bhatt_id@rediffmail.com; id_bhatt@yahoo.com ;