अक्सर देखा जाने वाले अनुभाग

(यदि आप जो खोज रहे हैं वह आपको नहीं मिल रहा है तो नीचे हमारे सर्च बार का उपयोग करें)

निदेशक की कलम से

प्रो. सुनील नौटियाल (अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट फेलो, जे.एस.पी.एस. फेलो)

निदेशक

गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान

विस्तृत प्रोफ़ाइल

जीवन में सीखते रहना एक अंतहीन प्रक्रिया है, जो कभी खत्म नहीं होती। लेकिन सबसे जरूरी यह है कि, हम किस वक्त क्या सीख रहे हैं? इस वर्तमान समय में यह जानना महत्वपूर्ण है कि जो हम सीख रहे हैं क्या वह भारत एवं विश्व में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए सक्षम है? आज के बदलते परिदृश्य, हम जो सीखते हैं उसमें सकारात्मक परिवर्तन लाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। वैश्विक आकांक्षाओं तथा जरूरतों के अनुसार हिमालय के वासियों ने अपने विकास के पुरानी तरीकों में बदलाव लाया है। हिमालयी क्षेत्रों में किए गए अनुसंधान ना केवल वहां के निवासियों को आजीविका प्रदान करेगा साथ ही क्षेत्र को संरक्षित भी करेगा। अनुसंधान एवं शिक्षा के माध्यम से हिमालयी क्षेत्र में स्थायी आजीविका के सृजन के साथ ही क्षेत्र के संरक्षण प्राथमिकताओं के निर्माण हेतु एक समेकिक दृष्टिकोण तैयार करना आवश्यक है। इस कार्य के लिए पारंपरिक कार्य और अनुशासन युक्त दृष्टिकोण पुराने हो चुके हैं। इस बदलते वक्त में हमारे संस्थान को और अधिक महत्वपूर्ण बनाने के लिए व्यक्तिगत तथा व्यापक शोध की आवश्यकता है। क्षेत्र की समस्याओं को हल करने के लिए हमें क्षेत्र के प्रति समर्पण के साथ-साथ बहुआयामी दृष्टिकोण भी अपनाने की जरूरत है। इसलिए राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान को ज्ञान की रचना और प्रसार करना चाहिए। हमें यह भी स्वीकारना होगा कि हिमालयी क्षेत्र में सांस्कृतिक एवं सामाजिक पृष्ठभूमि, व्यक्तिगत आकांक्षाओं और दृष्टिकोण जैसे विभिन्न विकास उद्देश्यों के लिए एक समान रणनीति नहीं हो सकती, इसलिए हम विभिन्न निहित भूमिकाओं, नेतृत्व स्थितियों, व्यक्तिगत दायित्वों और विविध परियोजनाओं के माध्यम से इसे संचालित करते हैं, जिससे लाभार्थी को समझने का अधिक अवसर मिलेगा और साथ ही साथ हम कलात्मक विचारधारा और उपलब्धि को प्राप्त कर पाएंगे।

हमारा मानना है कि यदि हम स्थानीय सोच और स्थानीय स्तर पर ईमानदारी से कार्य करते हैं तो वैश्विक आयामों पर निश्चित रूप से ध्यान पूर्वक कार्य किया जा सकता है। महात्मा गांधी ने शायद इसे इसलिए मंजूरी दी होगी कि स्थानीय भूमिका एवं वैश्विक सोच दोनों एक दूसरे के पूरक बनेंगे। अंततः एक दूसरे के साथ सामंजस्यपूर्ण व वैश्विक सोच के अनुरूप होने को स्थानीय भूमिका निर्धारण की ओर ले जाएगा। भविष्य के शोध जीवन की गुणवत्ता और गरिमा के मानकों के संदर्भ में समाज के वांछनीय भविष्य और वर्तमान के बीच के अंतर के पहलुओं के प्रति संवेदनशील होने चाहिए। अतः संस्थान को इन समस्याओं को हर संभव तरीके से हल करने की दिशा में काम करने की आवश्यकता है।

एक सक्रिय सोच, संस्थान के लक्ष्य और महत्व के लिए उत्तरदायी है, साथ ही अनुसंधान उत्पादकता और कार्रवाई योग्य परिणामों के लिए मार्गदर्शक है। इस हेतु संस्थान के चार विषयगत केंद्रों (i) भूमि और जल प्रबंधन केंद्र, (ii) सामाजिक-आर्थिक विकास केंद्र, (iii) जैव विविधता संरक्षण और प्रबंधन केंद्र (iv) पर्यावरणीय आंकलन और जलवायु परिवर्तन केंद्र) और छ: क्षेत्रीय केंद्रों ( गढ़वाल क्षेत्रीय केन्द्र, हिमाचल क्षेत्रीय केन्द्र, सिक्किम क्षेत्रीय केन्द्र, उत्तर-पूर्व क्षेत्रीय केन्द्र, लद्दाख क्षेत्रीय केन्द्र एवं पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में पर्वतीय विभाग) के बीच बेहतर तालमेल और अनुसंधान लक्ष्यों की सामूहिक स्थापना पर जोर दिया जाएगा जो अपने व्यक्तिगत तथा संस्थागत लक्ष्यों को प्राप्त करने में एक दूसरे के पूरक रहेंगे।

क्षेत्रीय और राष्ट्रीय प्रासंगिकता के अनुसंधान और विकास कार्यों में व्यापक उपयोग के लिए स्थानीय ज्ञान के विशाल भंडार की पहचान और सुदृढीकरण, समकालीन वैज्ञानिक ज्ञान के साथ तकनीकी विचारों के विकास तथा प्रदर्शन और प्रसार की दिशा में काम करने की भी आवश्यकता महसूस की गई है। भारतीय हिमालयी क्षेत्र के पर्यावरण के लिए उपयुक्त और स्थानीय लोगों के हित एवं आर्थिक स्थिति को सतत् रूप सुदृढ़ करने की भी जरूरत महसूस की गई है। संस्थान के पास सीधे पैमाने पर विकास के लिए संसाधन नहीं हो सकते हैं, परन्तु प्रदर्शन प्रतिरूपों (डेमोस्ट्रेशन मॉडल्स) और स्थानीय निवासी को प्रशिक्षण प्रदान कर यह कार्य किया जा सकता है, जो इन मॉडलों को राज्य और केंद्रीय योजनाओं से अनुदान के साथ बढ़ा सकते हैं, जिनका भूतपूर्व से ही क्षेत्र के विकास लिए उपयोग में लाया जा रहा है।

अनुसंधान के वर्तमान दृष्टिकोण को सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) - उन्मुख परिणामों से जोड़ा जा सकता है, जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) के तहत राष्ट्रीय मिशनों के साथ सुसंगत और स्थानीय, उप-क्षेत्रीय, क्षेत्रीय और संपूर्ण भारतीय हिमालयी क्षेत्र की सामाजिक-पारिस्थितिक प्रणालियों के लिए फायदेमंद होगा। इसके अलावा, हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय मिशन के विषयगत क्षेत्रों अर्थात प्राकृतिक और भूवैज्ञानिक संपदा, जल, हिम, हिमनदों सहित, वन संसाधन, वनस्पति जैव विविधता, सूक्ष्म वनस्पति, वन्यजीव, पारंपरिक ज्ञान प्रणाली, हिमालयी कृषि एवं सामाजिक पारिस्थितिक प्रणाली के साथ अनुसंधान के संबंधों को मजबूत करना अति आवश्यक है।

संस्थान मुख्य रूप से अनुसंधान, दृश्यता और प्रदर्शन / जनशक्ति प्रशिक्षण के समान संतुलन के साथ अधिक सहयोगात्मक कार्य जैसे शोध सम्बंधित कार्यक्रमों का समर्थन करेगा। हम्बोल्ट और जे.एस.पी.एस. फेलो के रूप में, मैं युवा शोध छात्र और युवा वैज्ञानिक को अंतर्राष्ट्रीय पहुंच, अध्ययन और शिक्षा वृत्ति जैसे सुविधा प्रदान करने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहूंगा। यह सहयोग भारतीय हिमालयी क्षेत्र में स्थित विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं संस्थानों, देश के अन्य संस्थानों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ संस्थान के मुख्य अधिदेश पर होगा जिसके माध्यम से हम सामाजिक पारिस्थितिकी प्रणालियों और पर्यावरण संरक्षण के सतत विकास से संबंधित कुछ वांछित लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं। कॉलेजों, विश्वविद्यालयों और संस्थानों के सभी विषयों के छात्रों की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए इंटर्नशिप कार्यक्रम पर जोर दिया जाएगा; जो सीमावर्ती मुद्दों पर व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करेगा, नए विचार, पेशेवर उत्कृष्टता और समस्या समाधान विश्लेषणात्मक क्षमता को पोषित करने के लिए समाज की पारिस्थितिकी अर्थव्यवस्था को बेहतर समझ प्रदान करेगा।

शोधार्थी संस्थान के महत्वपूर्ण अंग हैं । हमारा प्रयास सदैव बौद्धिक क्षमता, नवाचारों और रचनात्मक सोच को बढ़ावा देने एवं पर्यावरण और समाज के विकास की दिशा में काम करने के दृष्टिकोण के साथ नेतृत्व गुणों को अपनाने के लिए एक विश्व स्तरीय वातावरण प्रदान करना है। हम वैज्ञानिक अनुसंधान और विकास में नैतिकता के महत्व और व्यक्तिगत स्तर पर ईमानदारी, अखंडता, जोखिम लेने की क्षमता के साथ-साथ उनकी पेशेवर क्षमता को भी स्वीकार करते हैं।

वर्तमान दशक में संस्थान के लिए हमारा दृष्टिकोण राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मान्यता और प्रतिष्ठा के साथ-साथ नीति निर्माण हेतु अपने शोध परिणामों को व्यावहारिक तरीके से आगे बढ़ाना है, क्योंकि संस्थान समुदाय, शिक्षाविदों, उद्योग और नीति निर्माताओं सहित सभी आगंतुकों को प्रोत्साहित करता है, और उनके विचारों, ज्ञान और सुझावों के माध्यम से भारतीय हिमालयी क्षेत्र के विकास एवं पर्यावरण संबंधी समस्याओं को व्यावहारिक रूप से संबोधित करने के लिए सदैव प्रयत्नशील है।